रविवार, 19 दिसंबर 2010

khabare

नया क्या सुनाती हैं खबरे
बस रोज आती है खबरे
खड़े है वही जहा से चले थे
आंकड़े विकास के बताती हैं खबरे
भूखे पर गौर नहीं करता कोई
भूख से मरना बन जाती हैं खबरे
गिरे हैं खुद की नजर से कितना
द्रष उड़ान के दिखाती हैं खबरे
हकीकत से चुरा ली है आँखे सबने
सपनों की दुनिया बताती हैं खबरे
चल रहा जूठ का दौर अब
सच से कतराती हैं खबरे
देखता नहीं कोई तह में जाकर
ऊपर ऊपर बन जाती है खबरे
मत घबरा यह देख कर आनंद
छपती नहीं छपवाई जाती है खबरे

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