रविवार, 19 दिसंबर 2010

एक बार मिल गए मुझे भगवान
खड़े मंदिर के बाहर
अकेले उदास दुखी और पस्त
पूछा मैंने ठाकुरजी यहाँ कैसे
अन्दर है आपका स्थान
बोले भगवान
शरणागत सारे संसार के
मधिम आवाज मैं
मेरे भोले भगत अब नहीं है ठिकाना
मेरा मंदिर के अन्दर
मेरी पूजा के सारे स्थान बन गए है डेरे
किसी न किसी की स्वार्थ पूर्ति के
मेरी पूजा करने वालो ने खुद को घोषित कर दिया है भगवान
राजनाति की शतरंज बिछ गई है मेरे गर्भ गढ़ तक
तय हो गए है भाव मेरे दर्शन के प्रसाद के झांकी के
अब नाचना पड़ता है मुझे इनके इशारेपे
देने दर्शन किसी विआइपि को
इसलिए त्याग दिए है मेने मंदिर मस्जिस्द गुरुदाव्रे चुर्च और मठ
मिलने किसी सच्चे भगत से खड़ा हू मै इन पाखंड के डेरो के बाहर

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