रात सा आलम लगता हैं अब दोपहर में
बात कुछ ऐसी हुई पिछले दिनों शहर में
क़त्ल करने के लिए सीने में खंजर घोप दो
जान लेने वाली बात अब नहीं हे जहर में
देख कर लगता नहीं इस नदी की धार को
कल बहा कर ले गई जो गाव को लहर में
घात करने के लिए दुश्मन नहीं अब चाहिए
बहुत हो गए हे यार मेरे अब इस शहर में
आवाम की तकलीफ से भला उन्हें क्या वास्ता
ठाठ उनके हो गए हैं जन्दगी के प्रहर में
bahooot bhadiya bha... keep it up
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