शनिवार, 30 अप्रैल 2011

nadi ki dhar

रात सा आलम लगता हैं अब दोपहर में
बात कुछ ऐसी हुई पिछले दिनों शहर में
क़त्ल करने के लिए सीने में खंजर घोप दो
जान लेने वाली बात अब नहीं हे जहर में
देख कर लगता नहीं इस नदी की धार को
कल बहा कर ले गई जो गाव को लहर में
घात करने के लिए दुश्मन नहीं अब चाहिए
बहुत हो गए हे यार मेरे अब इस शहर में
आवाम की तकलीफ से भला उन्हें क्या वास्ता
ठाठ उनके हो गए हैं जन्दगी के प्रहर में

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

aajkal

हर कोई दे रहा उपदेश देखो आजकल
बन गया आदमी दरवेश देखो आजकल
सज गई धर्म की दुकान से सब बस्तिया
बिक रहे सीख के सन्देश देखो आजकल
सत्य के शेयर निरंतर गिर रहे हे
बढ़ रहा झूठ का संसेक्स देखो आजकल
दर्द मेरा देख कर सबने किनारा कर लिया
छिपा रहे हैं यार भी फेस देखो आजकल
पिस रहे मुल्क के आरमान दुगने वेग से
बढ़ रहा इस तरह से देश देखो आजकल
सेवा के सवाल पर नेताजी कहने लेगे
करना पड़ता हर जगह निवेश देखो आजकल
देश के हालात पर सवाल मत करना आनंद
खा जाती हैं कुस्रिया तेश देखो आजकल

रविवार, 3 अप्रैल 2011

bufe bhoj

बुफे जीमन
मुन्गरे सु करता था मनवारो मोटी मोटी
हाथ जोर जीमन ने आसन बिचावता
धोमा लेने करता था पुरासरो प्रेम सु
कवा देवन सारुखुद मोर्चा लगवाता
हम्मे ऐ सारी बातो लगे हे सपने ज्यू
डोलता फिरे हे सब रोटियो रीखोज में
हल्दीघाटी रो सीन देखना जो चाओ भाई
आओ म्हारे साथै इण बुफे वाले भोज में