शनिवार, 6 जून 2009
इंतजार और अभी
राजस्थानी और भोजपुरी सशक्त भाषा होते हुए भी आज तक संवाध्निक मान्यता को तरस रही हैं | पिछली लोक सभा में प्रस्ताव लाने के बाद भी उस पर सर्वसम्मति नही बन पाई जो निसन्दह ही दोनों भाषा प्रेमीओ के लिए निराशा की बात रही हैं | राजस्थानी भाषा का साहित्य किसी भी भारतीय भाषा से कम नही हैं | मध्य कल से लेकर आधुनिक कल तक के इतिहास पर नजर डाले तो स्पस्ट होता हैं किराजस्स्थानी भाषा जन जन कि भाषा रही हैं | आजादी के बाद से ही राजस्थानी कि मान्यता के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन अब तक सफलता नही मिली हैं | इसका मुख्य कारन राजनातिक इच्छा शक्ति कि कमी व जनता की यह सोच रही की इससे हिन्दी भाषा की गरिमा को धक्का न पहुचे |यही सोच राजस्थानी भाषा की मान्यता के सवाल को हल्का कर गयी |कनिया लाल सेठिया जेसे कवि व लक्ष्मीमल सिंघवी जेसे विधि वेता के प्रयास भी नाकाफी साबित हुए |चार करोड़ गुजरातियों की बात कर के नरेन्द्र मोदी देश के विकास पुरूष बन गए वही पॉँच करोड़ लोंगो की जुबान हो कर भी राजस्थानी भाषा मान्यता को तरस रही हैं | सरकार के पहले सौ दिन की योजना में भी इसका जिक्र नही हैं |शायद अभी और इंतजार करना लिखा हैं राजस्थानी के भाग्य में |
पहला कदम
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